मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में Maratha Reservation Row गहराता जा रहा है। मनोज जरांगे पाटिल (Manoj Jarange Patil) के नेतृत्व में हुए अनशन के बाद सरकार ने मराठा समाज की कई मांगें मान लीं और जीआर (Government Resolution) जारी कर दिया। लेकिन इस फैसले ने ओबीसी समाज (OBC Quota) में नई नाराज़गी पैदा कर दी है। वरिष्ठ ओबीसी नेता और मंत्री छगन भुजबल (Chhagan Bhujbal) ने संकेत दिए हैं कि वे इस फैसले को Bombay High Court में चुनौती दे सकते हैं।
जरांगे पाटिल का आंदोलन और सरकार का निर्णय
आज़ाद मैदान (Azad Maidan) में मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा समाज को आरक्षण दिलाने की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू किया था। पाँच दिन चले इस आंदोलन के दबाव में आकर सरकार ने उनकी 8 में से 6 मांगों को स्वीकार कर लिया। मंत्रिमंडल की उपसमिति ने जरांगे पाटिल से मुलाकात कर सीधे जीआर जारी कर दिया।
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ओबीसी समाज की चिंता
सरकार के इस फैसले के बाद ओबीसी समाज (OBC Community) में असंतोष फैल गया है। ओबीसी नेताओं का कहना है कि अगर मराठा समाज को ओबीसी कोटे से आरक्षण दिया गया तो उनके आरक्षण अधिकार (OBC Reservation Rights) पर संकट आ जाएगा। यही वजह है कि अब यह मुद्दा मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण का रूप ले चुका है।
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छगन भुजबळ का विरोध
जीआर जारी होने के अगले ही दिन कैबिनेट बैठक हुई, जिसमें छगन भुजबळ अनुपस्थित रहे। उनकी गैरमौजूदगी को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई। माना जा रहा है कि वे सरकार के इस कदम से नाराज़ हैं। भुजबळ पहले ही साफ कर चुके हैं कि किसी भी परिस्थिति में ओबीसी समाज के हक़ से समझौता नहीं होने देंगे।
High Court में जाने की तैयारी?
सूत्रों के मुताबिक, छगन भुजबळ अब इस मामले को कानूनी चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे आज या कल इस जीआर के खिलाफ Bombay High Court में याचिका दायर कर सकते हैं। हालांकि अभी तक उन्होंने आधिकारिक तौर पर कोर्ट में जाने का ऐलान नहीं किया है, लेकिन उनके बयानों से यह साफ है कि कानूनी लड़ाई की संभावना मज़बूत हो चुकी है।
राजनीतिक असर
मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) और ओबीसी आरक्षण (OBC Quota) का यह टकराव महाराष्ट्र की राजनीति में नया समीकरण खड़ा कर रहा है।
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जरांगे पाटिल का आंदोलन सफल दिखाई दे रहा है।
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लेकिन ओबीसी नेताओं का विरोध सरकार के लिए नई चुनौती बन गया है।
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अब सबकी नज़र इस बात पर है कि क्या मामला वास्तव में हाईकोर्ट तक पहुंचेगा और वहां सरकार का जीआर टिक पाएगा या छगन भुजबळ की चुनौती से इसे झटका लगेगा।