मुंबई। “क्या हमारी आवाज़ अब अपराध मानी जाएगी?” – यही सवाल लेकर हजारों लोग मंगलवार को मुंबई के शिवाजी पार्क में इकट्ठा हुए। महायुति सरकार द्वारा लाए गए जनसुरक्षा कानून ने आम जनता और विपक्षी दलों में गहरी बेचैनी पैदा कर दी है। इंडिया आघाड़ी ने इस कानून को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया और इसे तुरंत रद्द करने की मांग उठाई।
जनता की आवाज़ या सरकार का डर?
आंदोलनकारियों का मानना है कि यह कानून लोगों की आज़ादी और अभिव्यक्ति पर सीधा हमला है।
नेताओं ने कहा कि जब पहले से ही नक्सलवाद और गंभीर अपराधों से निपटने के लिए कठोर कानून मौजूद हैं, तो नया कानून क्यों लाया गया? प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार इस कानून को एक “हथियार” बनाकर आंदोलनों और सरकार विरोधी आवाज़ को दबाना चाहती है।
“पूंजीपतियों के लिए, जनता के खिलाफ”
इंडिया आघाड़ी नेताओं ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह कानून अडानी जैसे बड़े उद्योगपतियों के हित में है। उनका कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल आम जनता को डराने और विरोध की ताकत को खत्म करने के लिए किया जाएगा।
एक कार्यकर्ता ने गुस्से में कहा – “जो आवाज़ गरीबों और किसानों के हक़ के लिए उठेगी, सरकार उसे ही अपराध बना देगी। यह लोकतंत्र नहीं, तानाशाही है।”
आंदोलन में दिखी बड़ी एकजुटता
शिवाजी पार्क में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के पास जुटी भीड़ में कांग्रेस विधायक ज्योति गायकवाड़, पूर्व विधायक अशोक जाधव, भाकपा नेता संदीप शुक्ला, अनुसूचित जाति विभाग के मुंबई अध्यक्ष कचरू यादव, पूर्व नगरसेवक रघुनाथ थवई, प्रवक्ता अर्शद आज़मी, आनंद यादव, जयवंत लोखंडे, रोशन शाह, राजेश इंगले, कृपाशंकर सिंह, निलेश नानचे समेत कई संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे। लोगों ने एक स्वर में सरकार से यह कानून तुरंत रद्द करने की मांग की।
लोकतंत्र की जंग अभी बाकी…
मुंबई में हुए इस आंदोलन ने साफ़ कर दिया कि जनता और विपक्षी दल इस कानून को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। इंडिया आघाड़ी ने ऐलान किया है कि जब तक जनसुरक्षा कानून वापस नहीं लिया जाता, तब तक उनका संघर्ष सड़कों पर जारी रहेगा।